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भारतीय की प्राचीन आध्यात्मिक सम्पत्ति वेद, दर्शन, उपनिषद, रामायण, गीता आदि ऋषि ऋषिकाओं का विशुद्ध ज्ञान व संस्कारों से जीवन को धार्मिक व उन्नत बनाने के लिए, स्वाध्याय, संध्या, यज्ञ, योग, आयुर्वेद व परम्परागत कृषि से शुद्ध आहार, विचार जन-जन तक पहुँचाने तथा गौ माता की रक्षा के लिए ईश्वर की कृपा व प्रेरणा से आचार्य लोकेन्द्र जी (वैदिक प्रवक्ता एवं दर्शनाचार्य) ने इस "ऋत्विजम् वैदिक संस्थान ट्रस्ट" की स्थापना 2020-21 में की है। जिसका कार्यक्षेत्र समस्त भारत व मुख्य कार्यालय ऋषिकेश (उत्तराखंड) में रहेगा।
मौरवी राज्य (गुजरात) के टंकारा में फाल्गुन दशमी तिथि, सन् 1824 में जन्में, आर्य समाज के संस्थापक धर्मोद्धारक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी हमारे आधुनिक आदर्श महापुरुष हैं। स्वामी जी के अन्धविश्वास निर्मूलक ग्रंथ 'सत्यार्थ प्रकाश' एवं समस्त वैदिक साहित्य में वर्णित सभी ऋषि ऋषिकाओं को हम अपना पथप्रदर्शक व आप्त प्रमाण मानते हैं।
ऋत्विजम् वैदिक संस्थान ट्रस्ट
(Ritvijm Vaidik Sansthan Trust)
आज संपूर्ण विश्व एक आशा भरी नजरों से भारत की ओर निगाहें उठा कर देख रहा है। जो विश्व का मार्गदर्शक रहा। सबका आदिगुरु, सारे संसार को राह दिखाने वाला भारत आज अपनी मूल (जड़ों) को भूल कर दु:खों से पीड़ित हो गया है।
मानव मस्तिष्क के सभी ज्वलंत प्रश्नों के उत्तर जो हमारे ऋषियों ने वेद शास्त्रों में दिए वे नि:संदेह वैज्ञानिकता, सार्वभौमिकता, तार्किकता व सृष्टि क्रम के अविरुद्ध थे, और है। उनके सत्य सिद्धांत निरपवाद रूप से सत्य है।धरती पर जीने का सच्चा मार्ग ढूंढने के लिए जब भी कभी मानव अपनी दृष्टि उठाएगा तो उसे केवल और केवल वैदिक सनातन धर्म ही राह दिखाएगा।
मानवी जीवन की विफलता से आज असंख्य लोग साधन-संपदा प्राप्त करने पर भी सुख-शांति से वंचित रह गए है। सुशिक्षित, सभ्य और सुसंस्कृत माने जाने वाले लोग भी यथार्थ ज्ञान के अभाव में, तत्व ज्ञान के अभाव में भ्रमित होकर अंधविश्वासों में गिरकर अपना दुर्लभ जीवन नष्ट कर रहे हैं। और समाज का भी पतन कर रहे हैं।धर्म और अध्यात्म के बिना विज्ञान अपाहिज, दिशाहीन है। और धर्म, अधर्म को बताने वाला एकमात्र ग्रंथ वेद है। वेद की भाषा संस्कृत है। वह भी सामान्य रूप से लौकिक संस्कृत जानने वाले जनों की पहुँच से दूर है। अतः वर्तमान में काल, समय, परिस्थिति को देखते हुए सभी तक यह अध्यात्मिक दर्शन, ज्ञान सरलता से पहुँच सके, इसलिए हमने ईश्वर की कृपा व प्रेरणा से इसी विज्ञान का सहारा लेकर आप तक पहुँचने का प्रयास किया है।क्योंकि आज किसी के पास न तो इतना समय है कि वह गुरुकुल में जाकर के 10-12-15 वर्षों तक संस्कृत भाषा, वेद, दर्शन, उपनिषद, आदि का अध्ययन कर सकें और न ही देश में इतने आचार्य व धर्म उपदेशक है कि गाँव-गाँव , गली- गली में जाकर प्रचार कर सके, सभी प्रश्नों के उत्तर दे सकें।
आज सबको ज्ञान प्राप्त करने का एक ही सरल साधन हैं- इंटरनेट।
लेकिन इसमें इतना कुछ डाल दिया गया है। अच्छा-बुरा, अमृत-विष सभी साथ-साथ पी रहे हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा लाइब्रेरी बन गया है लेकिन इस लाइब्रेरी में कौन सा ज्ञान शुद्ध है और कौन सा अशुद्ध? इसकी पहचान करना मुश्किल हो गया है। इसलिए लोग विधिवत् ध्यान, साधना, उपासना, जीवात्मा, ईश्वर, जगत, पुनर्जन्म, कर्मफल व्यवस्था आदि के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ हैं, भ्रान्ति में है। मिथ्याज्ञान के कारण निर्णय नहीं कर पाते क्या सही है और क्या गलत है? इसी को ध्यान में रखते हुए ईश्वर कृपा से हमनें आप सब के सहयोग से "ऋत्विजम् वैदिक ट्रस्ट" के अंतर्गत "रक्षार्थं वेदानाम्" वेबसाइट का आरंभ किया। इसके माध्यम से आपके हर प्रश्न का उत्तर आपकी भाषा में, जो आपको सरलता सहजता से समझ आ सके, वेदों के सिद्धांतों व सनातन धर्म की शिक्षा का सही स्वरूप समझ सकें ऐसा प्रयास किया गया है।
चूंकि यह एक सामान्य कार्य नहीं है। इसमें बहुत-बहुत ऋषियों, योगियों, आचार्यों, महापुरुषों का तप जुड़ा हुआ है। इसलिए इस ज्ञान को यहाँ तक लाने, पहुँचाने में जिन-जिन तपस्वियों, योगियों, आचार्यों, धर्म उपदेशकों ने अपना जीवन आहूत किया उनके प्रति हम नतमस्तक हो प्रणाम करते हैं। उनका उपकार व ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता।
यह अपने दु:खों से मुक्ति व ईश्वरीय ज्ञान वेदों को समझने का एक बहुत बड़ा सार्थक प्रयास सिद्ध होगा ऐसा मुझे विश्वास है।
आचार्य लोकेन्द्र:
वैदिक प्रवक्ता (दर्शनाचार्य)