ध्यान या संध्या (Dhyan / Sandhya)
इस विडियो में ध्यान से सम्बंधित सभी माहिती दी गई है। ध्यान क्या है?, ध्यान किसका करे? उसकी विधि क्या है?, ध्यान के लाभ आदि सभी पश्नो के उत्तर के लिए यह विडियो देखे।
ईश्वर का ध्यान/ संध्या करने के नियम (Rules for meditation of God.)
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सूर्योदय से २ घंटे पूर्व उठकर शौच, व्यायाम, स्नान आदि के बाद ध्यान या संध्या करें। स्नान न करने की स्थिति में हाथ, पैर, मुख धोकर करें।
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एकांत स्थान का चयन करें प्रतिदिन स्थान न बदले।
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स्थान नियत रखें।
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प्रतिदिन एक समय पर ही होना चाहिए।
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तीन माह तक कम से कम न छोड़े। भले ही रूचि न हो, मन न लगे, आलस्य आये, तो भी ध्यान के अत्यंत लाभ देखते हुए बीच में ना छोड़े, निरन्तर श्रद्धापूर्वक करें।
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संध्या के वस्त्र सादे व बैठने का आसन अच्छा हो। सोने-खाने की जगह, बिस्तर, कुर्सी आदि पर न करें।
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पुरूष धौति या कटी वस्त्र धारण करें, उत्तरीय अवश्य रखें। महिलाओं को भी सादे कपड़ों में जो गर्मी-सर्दी के अनुकूल हो ऐसे उत्तम सूती वस्त्र धारण कर ईश्वर का ध्यान करना चाहिए।
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समय कम ना करें प्रतिदिन आधा घंटा करना है तो फिर ऊपर नीचे ना करें।
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ध्यान से पहले गायत्री मंत्र बोलकर शिखा बंधन अर्थात अपनी चोटी बांध लेनी चाहिए।
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सभी महिलाएँ भी अपने केश ध्यान के समय रबर बैंड आदि से बांधकर रखें।
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शिखा बांधने के बाद शुद्ध जल से आचमन करना। आचमन मंत्र बोलकर दायी अंजलि से तीन बार जल पीना।
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सभी इंद्रियों की शुद्धि व स्फूर्ति के लिए प्रार्थना व मंत्रपूर्वक अंगस्पर्श करना चाहिए।
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इसके बाद बाह्य प्राणायाम कम से कम तीन बार अवश्य करें और मन में प्राणायाम मंत्र का जप करते रहें।
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प्राणायाम हमेशा भोजन से पूर्व व सभी कार्यों से निश्चिंत हो कर करें।
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ईश्वर एक है, निराकार, चेतन, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान है। ईश्वर का जन्म-मृत्यु नहीं होती। उसका निज नाम ओ३म् है। उसके बाकी सभी नाम गुणवाचक व सम्बन्धसूचक है। ये शब्द अपने मन बुद्धि में अच्छी तरह बैठा लीजिए।
शिखा बंधन, आचमन, इंद्रियों की शुद्धि व बाह्य प्राणायाम की विधि के लिए यहाँ दिया गया विडियो देखे।
और यह 10 बातें अपने मन मस्तिष्क से निकाल दीजिए यदि आप जीवन में सफलता, शान्ति व आरोग्यता चाहते हैं-
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मुझसे नहीं होगा।
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मेरी रूचि नहीं है।
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मेरे पास समय नहीं है।
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मेरा भाग्य अच्छा नहीं है।
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कोई सिखाने वाला नहीं हैं।
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यह तो ऋषि-मुनियों का कार्य है। हम तो घर-गृहस्थी में है।
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यह काम तो बुढ़ापे में देख लेंगे।
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भगवान की उपासना, जप से पेट नहीं भरता। अपना कर्म ही पूजा है।
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यह जीवन ऐसे ही चलेगा।
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हमें माता-पिता और वातावरण ही अच्छा नहीं मिला।
इनमें से यदि कोई बात आप बोलते हैं तो समझ लीजिए आप बहाने और भी ढूंढ सकते हैं।
ध्यान और संध्या में क्या भेद हैं? (What is the difference between Dhyan and Sandhya?)
इसे पाठक गण इस प्रकार से समझ सकते हैं कि धारणा (मन को किसी एक जगह टिकाना) जहाँ पर किया जाए, वहाँ ज्ञान का एक समान प्रवाह बने रहना ध्यान कहलाता है। योगदर्शनकार महर्षि पतंजलि के अनुसार "तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्"। सांख्यकार महर्षि कपिल के अनुसार "रागोपहति ध्यानम्" राग-द्वैष से छूटने की अवस्था ध्यान है। "ध्यानं निर्विषयं मन:" भौतिक विषयों से मन को हटाना (निर्विषय) तथा आत्मा, ईश्वर में लगाना ध्यान है। सामान्य रूप से एकाग्रता की अवस्था को ध्यान कहते हैं। वह कहीं पर भी हो। ध्यान प्रकृति के पदार्थों, मन, आत्मा या ईश्वर कहीं पर भी हो सकता है।
'संध्या-'सन्ध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यां सा संध्या'
भली-भाँति ध्यान करते हैं अथवा जिसमें परमेश्वर का ध्यान किया जाए, वह क्रिया संध्या है। संध्या ब्रह्मयज्ञ का एक अंग है। यह परमेश्वर अर्थात ब्रह्म की उपासना है। जो नित्य कर्म है तथा प्रातः सूर्योदय से पूर्व तथा सायंकाल सूर्यास्त से लेकर तारा दर्शन पर्यंत संधि काल में की जाती है। ध्यान की विधियाँ व क्षेत्र भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन ईश्वर की उपासना की विधि सबकी एक ही होती है वही संध्या है। संसार में संध्या शब्द सूर्यास्त के समय, दिन और रात्रि के मिलन के नाम से प्रसिद्ध है, लेकिन यह विडंबना है। इस तथ्य को बहुत कम लोग जानते हैं कि संध्या का अर्थ ईश्वर की विधिवत् वेदमंत्रों से उच्चारण और मनन पूर्वक उपासना करना है। जबकि ध्यान व्यापक रूप से प्रसिद्ध शब्द हैं जो कहीं पर भी होता है, आप भी बच्चों को कहते हैं ध्यान से पढ़ो, ध्यान से चलो, ध्यान से खेलो, ध्यान से बोलो, ध्यान से खाओ, और यहाँ पर ध्यान लगाओ, ध्यान से सुनो कितना सुंदर गीत है, ध्यान से देखो कितना अच्छा रूप है, ध्यान से पढ़ो क्या लिखा है, ध्यान से सुंघो कितनी अच्छी सुगन्धि है, ध्यान से छूना कहीं जल ना जाए, ध्यान से रखना कहीं गिर ना जाए, ध्यान से जाना गड्ढा है, पेड़ पर ध्यान से चढ़ना डाली कमजोर है और परीक्षा में ध्यान से लिखना गलत मत करना आदि-आदि बहुत जगह ध्यान का प्रयोग व्यवहार में करते व कराते रहते हैं। इसलिए इन जगहों पर 'ध्यान' के स्थान पर 'संध्या' शब्द का प्रयोग नहीं हो सकता। जबकि ईश्वर का ध्यान संध्या ही होता है।
क्या ईश्वर के ध्यान या संध्या का तरीका भिन्न-भिन्न होता है? (Does the method of meditating of God differ?)
ऋषियों ने संध्या या ब्रह्म यज्ञ के लिए वेद मंत्रों का आह्वान किया है। संध्या विधि का क्रम भी उसी प्रकार से रखना चाहिए जैसा महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सभी आर्यों/हिन्दूओं के लिए निर्धारित किया है। यह क्रम इस प्रकार हैं।
गुरु मंत्र या गायत्री के द्वारा शिखा बंधन।
आचमन ।
इंद्रिय स्पर्श।
मार्जन।
प्राणायाम।
अघमर्षण के 3 मंत्र।
मनसा परिक्रमा के 6 मंत्र।
उपस्थान के 4 मंत्र।
पुनः आचमन।
पुनः गुरुमंत्र।
नमस्कार मंत्र।
यदि संपूर्ण विश्व की पूजा उपासना की पद्धति एक हो जाए तो धर्म, जाति, भाषा, प्रांत, देश आदि के आधार पर होने वाले विभाजन रक्तपात व विनाश से मानव को बचाया जा सकता है। विश्वशांति का यह एकमात्र उपाय हैं। इसके अलावा संसार में पूर्णत: युद्धों को, रोगों/महामारियों को समाप्त करने का कोई भी उपाय नहीं है। मानव के साथ जब ईश्वरीय शक्ति रहती है तब वह बलवान, बुद्धिमान, पवित्र, चरित्रवान, वैज्ञानिक बनकर जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करता है। इसलिए एक वैज्ञानिक, सार्वभौमिक, सर्वग्राही उपासना पद्धति हम सब को स्वीकार करनी चाहिए। इसी में सबका कल्याण छिपा है। यहाँ हमने संध्या के मन्त्रों का ऑडियो दिया है। आप इसे सुनकर भी संध्या सीख सकते हैं।
ध्यान/संध्या के ऑडियो (Audios for meditation)
यहाँ हमने कुछ ध्यान के ऑडियो दिए हैं। यह ऑडियो सुनकर आप ध्यान कर सकते हैं।