🌷परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।
लोहे के तार में न दिखाई देने वाली निराकार प्रवाहित विद्युत (बिजली) कितने बड़े बड़े मोटर, ट्रेन, क्रेन व भारी यंत्र चला रही है, केबल के अंदर तार में जिसका स्पंदन तक नहीं दिख रहा, वह बिजली कितने भारी भरकम लिफ्ट को सैंकड़ो मीटर ऊंची बिल्डिंग पर बिना किसी बाधा के आराम से या तीव्रता से भी उठा ले जाती है। फिर ईश्वर पर ही यह प्रश्न क्यों! कि ईश्वर बिना इंद्रियों व शरीर के कैसे जगत को घुमा रहा है? कैसे उठा रहा है? कैसे रक्षा कर रहा है?
अब आगे...
जब प्रकृति में भी ऐसी ऊर्जा शक्ति दिख रही है जो न दिखाई देने पर भी बहुत बड़े कार्य कर रही है। इस प्रकृति से भिन्न निराकार चेतन आत्मा व ईश्वर यदि करे तो क्यों प्रश्न चिन्ह लगता है?
यह शरीर प्रकृति का हिस्सा है। यह तो जड, अचेतन या निर्जीव है। इसलिए चेतन आत्मा ही शरीर में रहकर इसको चलाता है।
यह इस एक उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगा। इसे समझने का प्रयास करें-
देखो! किसी (वेटलिफ्टर) भार उठाने वाले खिलाड़ी ने 250 किलोग्राम भार उठाया।
किसने उठाया?
उस खिलाड़ी ने।
किससे उठाया?
अपने शरीर से, हाथों से।
जिन हाथों से भार उठाया उन हाथों को किसने उठाया??
क्या उत्तर है आपका!
क्योंकि हाथ तो प्रकृति या जड़ जगत का अंश है अर्थात् अचेतन है जैसे केबल तार आदि।
आप कहेंगे अंदर की ऊर्जा ने हाथों को उठाया !
तो वह ऊर्जा भौतिक ऊर्जा है बिजली की तरह या भिन्न कोई सत्ता है?
यदि बिजली की तरह है तो कंरट से तो शरीर जल जायेगा, नष्ट हो जाता हैं, यह आप विद्युत को छूकर भी देख चुके होंगे! कभी या अन्य जीवों को बिजली छू जाने से मरते हुए देखा होगा। अन्य कोई भौतिक या परमाणवीय ऊर्जा भी नहीं हो सकती।
तो कौन सी ऊर्जा है? जो शरीर को उठाती हैं!
वह अन्य भिन्न निराकार चेतन आत्मा ही है। उसे आप ऊर्जा नाम रखकर स्वरूप को तो नहीं बदल सकते।
जब अणु से भी सूक्ष्म निराकार आत्मा जिस शरीर में रहता है उस शरीर को उठा लेता है, तो निराकार सर्वव्यापी परमात्मा के इस जगत को धारण, रक्षण करने पर उसे ऊर्जा का नाम देकर नाम भेद करना मात्र है। वही जगत की रक्षा करता है।
यह सारा ब्रह्माण्ड उसी का शरीर है, उसी ने उठाया हुआ है। ऐसा समझना चाहिए।
यदि इस लेख से सम्बन्धित कोई प्रश्न या पक्ष विपक्ष में तर्क आप प्रस्तुत करें तो स्वागत है।
मेरा उद्देश्य वेदों, दर्शनों व ऋषियों के आधार पर ईश्वर को चेतन, निराकार, सर्वव्यापी, सर्वान्तर्यामी, न्यायकारी, दुःख विनाशक सिद्ध करना है, नास्तिकों का मुंह बंद करना मेरा लक्ष्य नहीं है, बल्कि आस्तिकों की आस्तिकता को सत्य सिद्ध करना है कि ईश्वर है...
और यदि आप ईश्वर, आत्मा, प्रकृति आदी के विषय में विस्तार से जानना चाहते हैं तो हमने यहाँ निचे लिंक दी है। आप उसे पढ़ सकते है।
आचार्य लोकेन्द्र:
Comentarios