🌷परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।
इस श्रृंखला (सीरीज) के पहले भाग में आपने पढ़ा कि ईश्वर किसकी प्रार्थना या इच्छा पूरी करता है? और किसकी प्रार्थना या इच्छा पूरी नहीं करता? अब आगे...
ईश्वर आपकी बात नहीं मानता क्योंकि आप ईश्वर की बात नहीं मानते। जब आप उसकी नही सुनेंगे, मानेंगे तो वह आपकी नहीं मानेगा, हिसाब बराबर। लेकिन नहीं। आप उसकी नहीं मानते वह फिर भी दयालू माँ की तरह बहुत बड़ी रक्षा कर रहा है।
कोई हमारी रक्षा या सहायता कब करता है?
जब हम उससे प्रेम करते हो?!
नहीं बल्कि "जब वो हमसे प्रेम करता हो।" तब तो बिना कहे ही सहायता या रक्षा कर देता है।
लेकिन संसार में बहुत से लोग हमें जानते तक नहीं, प्रेम भी नहीं करते, लेकिन जब दुःख या संकट की स्थिति में आप किसी अपरिचित को भी सहायता के लिए प्रार्थना करते हैं तो प्राय: सहायता मिल ही जाती है।
ध्यान दीजिए संसार के अपरिचित लोग जिन्हें आप जानते नहीं, बिना सहायता माँगे वे भी सहायता नहीं करते। लेकिन ईश्वर आपके लिए अपरिचित होते हुए भी सहायता करता है। आप भूल चुके हैं, लेकिन आप ईश्वर के लिए अनजान नहीं है, वह आपको ठीक-ठीक जानता है, वह नहीं भूलता, उसमें भूलने का गुण नहीं है। दयालू परमात्मा बिना सहायता माँगे ही आपकी हर समय सहायता कर रहा है।, जबकि संसार के वे ही पराये लोग आपकी सहायता करते हैं जिन्हें आप पुकारते हैं। ईश्वर कितना दयालु है बिना पुकारे भी और आपके द्वारा विस्मृत किये जाने पर भी हर समय, हर जगह महान उपकार व रक्षा कर रहा है।
उसकी सामान्य दया तो सभी प्राणियों पर है, लेकिन हाँं! उसकी विशेष कृपा सब पर नहीं है।
उसकी विशेष कृपा पाने के लिए इतना पर्याप्त नहीं है कि आप उससे प्रेम करें, बल्कि वो आपसे प्रेम करें। जैसे कि संसार में जो आपसे प्यार करता है वह बिना कहे ही आपकी भावनाओं को समझकर आपके लिए सब प्रकार से सहायता करता है! आपके लिए प्रार्थना भी करता है। हो सकता है संसार के लोग रक्त सम्बन्ध, मित्र, गुरू, पडौसी या अन्य राग-मोह के कारण आपसे प्यार करते हो, इस कारण रक्षा कर रहे हो। लेकिन ईश्वर का आपसे ऐसा भौतिक रक्त सम्बन्ध नहीं है। उसमें राग-मोह भी नहीं है। फिर वह आपसे क्यों विशेष प्रेम करेगा? किस कारण से? क्यों विशेष कृपा करें? जबकि पहले से ही इतनी दया कर रहा है।
आप ऐसा क्या करें कि वह आपसे दूसरों से अधिक प्रेम करें? और आपकी व आपके परिवार की रक्षा करें...
क्रमशः...
आचार्य लोकेन्द्र:
वेदों के नियमानुसार पहले हमे अपने आप को योग्य बनाना होगा तब ईश्वर को ढूंढ सकेंगे। आचार्य जी मेरा उत्तर गलत है तो मार्ग दर्शन कीजिए