🌷परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।
इस श्रृंखला (सीरीज) के आगे के भागो में आपने पढ़ा कि ईश्वर हम सबकी प्रार्थना सुनता है जो मन में हम ईश्वर को कहते हैं (बिना बोले ही) वह सुनता है, लेकिन वह हमारे मन में जो प्रेरणा संदेश/आदेश देता है हम उसे नहीं सुनते। वह सबकी रक्षा किस तरह से कर रहा है आदि आप पढ़ चुके हैं अब आगे...
कोई भी मनुष्य मरना नहीं चाहता किन्तु एक न एक दिन सभी मरते हैं मृत्यु को देखकर सभी के मन में यह विचार अवश्य ही आता है कि कोई बहुत बड़ा महाबलशाली, महाशक्तिमान ही मृत्यु को कराने वाला है, जो किसी भी स्थान पर, किसी को भी नहीं छोड़ता। इससे पता चलता है कि वह सर्वत्र रहता है उससे कोई भी दूर नहीं है!
जो मनुष्य ईश्वर से डरते हैं कि यह हमको सब समय में, सब ओर से देखता है, यह सारा संसार ईश्वर से व्याप्त है अर्थात वह सभी जगह विद्यमान हैं इस प्रकार उस सर्वव्यापी अंतर्यामी को जान करके कभी भी हिंसा नहीं करते। वे धार्मिक होकर इस संसार में अभ्युदय(भौतिक उन्नति) और इस जन्म के बाद निश्रेयस(आध्यात्मिक उन्नति) को प्राप्त होकर सदा आनंद में रहते हैं जो ईश्वर की प्रेरणा को सुनते हैं।
उसे ढूंढने जाने के लिए बाहर जाने की आवश्यकता नहीं, बल्कि ज्ञान की आवश्यकता है। यदि आपके घर में जहाँ आप बैठे हैं वही भूमि के नीचे बहुत सारा सोना छिपा हुआ हो और आपको पता नहीं हो अर्थात अज्ञानता हो तो जीवन भर दरिद्रता में यूं ही दु:ख में जीते रहेंगे। लेकिन यदि ज्ञान हो जाए कि कितना खजाना मेरे ही नीचे दबा हुआ है तो खोद करके निकाल लेंगे और दरिद्रता का दु:ख मिटा लेंगे। ऐसे ही ईश्वर खोज का विषय है मानने का नहीं! मान लिया और मिल गया? ऐसा कभी नहीं हो सकता। खोजना पड़ेगा और खोज वही करता है जो मननशील है, ज्ञानी है। जो अज्ञानी है और विचार नहीं करता वह उसे कभी नहीं पा सकता...
क्रमशः...
आचार्य लोकेन्द्र:
ईश्वर पर किसी की प्रसंशा या आलोचना का कोई प्रभाव नहीं होता