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लेखक की तस्वीरAcharya Lokendra

रक्षको का भी रक्षक वह सर्वरक्षक "ओ३म्" है।

अपडेट करने की तारीख: 2 जन॰ 2023


🌷परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।


इस श्रृंखला में अभी तक आपने पढा कि ईश्वर को हम मानते तो हैं लेकिन जानते नहीं! ईश्वर को जानकर मानना नहीं सीखा। केवल मानना सीखा। और जैसा आपको देश, समाज या वातावरण मिला, जैसा आसपास के लोगों ने बताया या आपके द्वारा संसार में देखा गया वैसा ही मान लिया। वैसी ही विधि से उसकी पूजा भक्ति शुरू की। और इन भिन्न-भिन्न भगवानों की विभिन्न पूजा पद्धति को आप श्रद्धा का नाम देकर वेदोक्त सत्य ईश्वर से अनभिज्ञ रहे। इसी कारण दूनिया में अनेकेश्वरवाद है। जो सभी झगड़ों का मूल कारण है। तो यथार्थ क्या है? आपको एक ईश्वर की खोज करनी चाहिए। जिन्होंने महान पुरूषार्थ करके खोजा है, उन जलते हुए दीपों से हम भी अपने अंदर का दीपक जलाएँ और मन के गहरे अंधेरे में उजाला करके उसे भी देख लें, जिसे देखने के बाद शेष कुछ देखना बाकी नहीं रह जाता, और जो चर्मचक्षुओं से देखा ही नहीं जाता।

अब आगे..


एक व्यक्ति बहुत ऊंचे वृक्ष पर बैठा हुआ है, तुम वृक्ष के नीचे भूमि पर बैठे हो। चारों ओर घुमावदार पहाड़ी का रास्ता है उधर से चुपचाप एक शेर आ रहा है। तुम उस शेर को नहीं देख पा रहे हो, अतः जब ऊँचाई पर वृक्ष पर पत्तो में छिपा बैठा व्यक्ति इस विषय में बताता है- तो तुम कहते हो कि "वहाँ कुछ नहीं है।" वह तुम्हारे लिए भविष्य है, लेकिन उसके लिए वह शेर वर्तमान है। थोड़ी देर बाद वह शेर आपको भी दिखाई देता है, तब वह आपके लिए वर्तमान है। जब शेर आगे बढ जाता है और घुमावदार रास्ते से पहाडी के नीचे जाता है तो तुम्हारी आँखों से ओझल हो गया है, यह अब तुम्हारे लिए 'भूत' है। परन्तु वृक्ष पर बैठे व्यक्ति के लिए वह सामने दिख रहा है और 'वर्तमान' है। इस एक वृक्ष पर बैठे सामान्य मनुष्य के दृष्टांत से आप समझ सकते है कि जो कण-कण में व्याप्त सर्वशक्तिमान ईश्वर है वह संसार रूपी इस वृक्ष के अंदर समाया हुआ सर्वत्र विद्यमान है। सभी जगह, अंदर, बाहर, मध्य में सबको एक साथ देखता है।


कोई हैं जो सर्वव्यापी चेतन निराकार परमेश्वर है और अपने ज्ञान चक्षुओ से इस संसार को देख रहा है।उसके लिए काल महत्त्व नहीं रखता, उसके लिए काल या समय भूत, वर्तमान, भविष्य में विभक्त नहीं होता।

अब आप विचार करें कि आपका कल या भविष्य कोई और जानता है! और आपका भूतकाल भी किसी को पता है! जो ज्ञान के शिखर पर है वही सर्वद्रष्टा है, लेकिन आप उसको नहीं जानते, उसकी नहीं मानते! पता है क्यों? क्योंकि आपको केवल वर्तमान देखने की आदत डाल दी गई है। इसलिए आप सावधान नहीं है। आने वाले कल से अनभिज्ञ हैं, कल क्या होने वाला है?-


स्वदेशी संस्कृति बचाने के लिए एक गीत लिखा गया था। उसकी दो पंक्तियां इस प्रकार है -


बदलो बदलो साथी, भारत की तकदीर को।

पहचानों! आने-वाले कल की तस्वीर को।।


यदि हमें भविष्य में सुरक्षा चाहिए तो आज से तैयारी कीजिए। वह भूखा शेर आपको नहीं दिख रहा, लेकिन उसको दिख रहा है जो वृक्ष पर बैठा व्यक्ति हैं। इसलिए उसकी बात माननी चाहिए जो सबकुछ देख रहा है।


वह रक्षा करता है। सज्जनों की रक्षा और दुष्टों का विनाश करने के लिए हर युग में, हर समय संभव रहता है‌। अर्थात् अभी भी उपस्थित हैं।

अवतार के भरोसे कभी रक्षा नहीं हो सकती। उसने वेदों में बता दिया है और ज्ञान की शक्ति दी है। उस ज्ञानचक्षु से हम सबको अपनी रक्षा स्वयं करनी चाहिए। धर्म संस्थापना के लिए वह सब समय हमें आदेश दे रहा है। हम उसे आदेश देने वाले कौन होते हैं! वह आप सबके द्वारा ही धर्म संस्थापना कराता है और स्वयं कर्ता होते हुए भी अकर्ता ही है।


वह महान से भी महान है। अणु-परमाणु से भी सूक्ष्मतम है। किसी के अंदर व्याप्त होने में उसे कोई रूकावट नहीं आती। लेकिन उसके अंदर जाने में मनुष्य को बहुत रूकावटें है।

परमे व्योमन्।

ओ३म् खं ब्रह्म।

तस्य वाचक: प्रणव:।


यदि समझ में आ गया हो तो अच्छा है.. पहले आँखें खोले। फिर आँखें बंद करके बैठे ओर अपनी खोज शुरू करें! अन्यथा पढ़ते रहिए!


क्रमशः...

आचार्य लोकेन्द्र:



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